
साढ़ेसाती-Sade Sati:Durg Bhilai Astrologer
Durg Bhilai Astrologer Lakshmi Narayan के अनुसार, शनि की साढ़ेसाती का अर्थ है जन्म के समय चंद्रमा की स्थिति के आधार पर शनि का गोचर। जब चंद्रमा जिस भाव में होता है, उसके 12वें, पहले और दूसरे भाव में शनि का गोचर होता है, इसे ही साढ़ेसाती बोला जाता है और शुरू होती है।
शनि की साढ़ेसाती के तीन प्रमुख चरण होते हैं। पहले चरण में चंद्र राशि से 12वें भाव में शनि का गोचर होता है। दूसरे चरण में शनि चंद्र राशि में ही गोचर करता है, जबकि तीसरे चरण में शनि चंद्र राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करता है।
चूंकि शनि के प्रत्येक 3 चरण में ढाई वर्ष रहते है, इसलिए इस संपूर्ण अवधि को साढ़ेसाती के रूप में जाना जाता है। यह एक महत्वपूर्ण ज्योतिषीय अवधारणा है, जो व्यक्ति के जीवन में विभिन्न प्रभाव डाल सकती है।
लक्ष्मी नारायण का कहना है कि साढ़ेसाती के साढ़े सात (7.5) वर्ष हमेशा नकारात्मक नहीं होते। कुंडली में शनि की स्थिति, उसके स्वामी के साथ संबंध और जन्म राशि के भाव में शनि के प्रभाव के अनुसार यह समय शुभ या अशुभ हो सकता है। इस प्रकार, शनि की शुभता और अनुकूलता का निर्धारण विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है।
शनि की ढैय्या क्या है
शनि की ढैय्या का अर्थ है जब आपकी राशि के चौथे या आठवें भाव में शनि का गोचर होता है। साढ़े साती की यह महत्वपूर्ण अवधि लगभग साढ़े सात वर्षों तक चलती है और इसे तीन अलग-अलग चरणों में विभाजित किया जाता है, जिनमें से प्रत्येक चरण ढाई वर्षों तक चलता है। शनि की ढैय्या जातक के शिक्षा, स्वास्थ्य, माता, भूमि और संपत्ति जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं पर प्रभाव डालती है।
विशेष रूप से, आठवें भाव से संबंधित शनि की ढैय्या जातक के स्वास्थ्य, दीर्घायु, विरासत और ससुराल के मामलों को प्रभावित करती है। इस प्रकार, शनि की ढैय्या का प्रभाव जातक के जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण होता है और इसे समझना आवश्यक है।
शनि की साढ़े साती से बचने के लिए उपाय
शनि की साढ़े साती से निपटने के लिए कुछ उपाय किए जा सकते हैं। लक्ष्मी नारायण के अनुसार, यदि आप इस समय से गुजर रहे हैं, तो चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। आप शनिदेव के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करके उनके नकारात्मक प्रभावों को कम कर सकते हैं।
इस अवधि में शनिदेव के मंदिर में जाकर शनिवार के दिन सरसों का तेल और काले तिल अर्पित करना लाभकारी होता है। यह उपाय शनिदेव की कृपा प्राप्त करने में सहायक होता है। इसके साथ ही, शनिवार को शनि चालीसा का पाठ करना भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
इसके अतिरिक्त, शनिवार के दिन 21 बार शनि स्त्रोत का पाठ करने से शनि की साढ़े साती के प्रभावों से मुक्ति मिलती है। इस प्रकार, नियमित रूप से इन उपायों का पालन करने से आप अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं।